अयोध्या में गोसाईंगंज विधानसभा क्षेत्र में फिर दो बाहुबलियों के बीच सियासी वर्चस्व की जंग चल रही है। दोनों एक-एक बार विधायक रह चुके हैं। बसपा, कांग्रेस सहित अन्य दल मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की जुगत में हैं।
भाजपा से आरती तिवारी, सपा से अभय सिंह, कांग्रेस से शारदा जायसवाल, बसपा से राम सागर वर्मा, आप से आलोक द्विवेदी सहित कुल आठ प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। यह सीट 2012 के चुनाव में वजूद में आई। पहले चुनाव में सपा के अभय सिंह ने बसपा से उतरे इंद्र प्रताप तिवारी खब्बू को शिकस्त दी थी। दोनों की पहचान बाहुबली के रूप में है।
2017 के चुनाव में फिर दोनों बाहुबली आमने-सामने थे। अंतर केवल इतना था कि अभय सिंह सपा के ही प्रत्याशी थे, पर खब्बू तिवारी इस बार भाजपा के चुनाव चिह्न पर मैदान में थे। इस बार पासा पलट गया और खब्बू ने 11 हजार मतों से अभय सिंह को शिकस्त दे दी। इस बार भी दोनों बाहुबलियों के बीच सियासी जंग चल रही है। अंतर केवल इतना है कि इस बार दोनों बाहुबली सीधे आमने-सामने नहीं हैं। खब्बू तिवारी की पत्नी आरती तिवारी अभय सिंह के खिलाफ मैदान में हैं। खब्बू तिवारी फर्जी डिग्री के मामले में जेल में हैं।
नए चेहरे लड़ाई त्रिकोणीय बनाने में जुटे : दलित और ब्राह्मण बहुल इस सीट पर कांग्रेस ने शारदा जायसवाल को मैदान में उतारा हैं। उनके परिवार के लोग पुराने कांग्रेसी हैं, तो बसपा से दंगल में कूदे राम सागर वर्मा क्षेत्र के जाने-पहचाने चेहरे हैं। आम आदमी पार्टी से प्रत्याशी आलोक द्विवेदी बीकापुर के पूर्व विधायक संत श्री राम द्विवेदी के पुत्र हैं। ये नए चेहरे मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हुए हैं।
कुल मतदाता 3,93,447
दलित 91 हजार
ब्राह्मण 80 हजार
कुर्मी 55 हजार
निषाद 60 हजार
ठाकुर 33 हजार
यादव 35 हजार
अन्य 39 हजार
2017 का चुनाव परिणाम
इंद्रप्रताप तिवारी खब्बू,भाजपा 89,586
अभय सिंह, सपा 77,966
धर्मराज निषाद, बसपा 46,528
अयोध्या और प्रयागराज के केंद्र में स्थित भगवान राम के पुत्र कुश की नगरी में समाहित सुल्तानपुर विधानसभा सीट का सियासी हलके में खास महत्व है। आजादी के बाद से लेकर 2017 तक के कुल 17 चुनावों में यहां के मतदाताओं ने सिर्फ चार दलों को ही मौका दिया है। इस सीट से जनसंघ व भाजपा को सात बार, कांग्रेस को छह बार, सपा को तीन बार तो जनता पार्टी को एक चुनाव में जीत हासिल हो सकी है। बसपा सहित अन्य दलों का यहां खाता नहीं खुल सका है।
इस बार चुनाव में भाजपा से पूर्व मंत्री विनोद सिंह, सपा से पूर्व विधायक अनूप संडा, बसपा से डॉ. डीएस मिश्रा और कांग्रेस से फिरोज अहमद चुनाव मैदान में हैं। भाजपा के टिकट पर पिछला चुनाव जीतने वाले सूर्यभान सिंह का टिकट इस बार पार्टी ने काट दिया है। मौजूदा चुनाव में भाजपा के समक्ष जहां सीट बचाए रखने की चुनौैती है, वहीं सपा के सामने 2012 का इतिहास दोहराने की। बसपा भी जीत हासिल कर इतिहास बनाने को लेकर बेताब है।
सबको भरोसा ध्रुवीकरण पर
शहर से जुड़ी इस सीट पर वैश्य, मुस्लिम और अनुसूचित जाति के मतदाता हर चुनाव में निर्णायक साबित होते रहे हैं। इन जातियों के मतदाताओं के ध्रुवीकरण ने हमेशा जीत-हार में अहम भूमिका निभाई है। सभी दलों के प्रत्याशियों ने चुनाव मैदान में पूरी ताकत झोंक दी है। चुनाव की गर्मी के बीच मतदाताओं की चुप्पी प्रत्याशियों के साथ ही सियासत की समझ रखने वालों को भी हैरान किए हुए है। चुनाव पूरी तरह जातीय समीकरणों में उलझ गया है। सभी दलों को अपने परंपरागत वोटों पर भरोसा है। विकास को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले प्रमुख दलों के प्रत्याशी ध्रुवीकरण की कोशिशों में जुटे हैं।
मुद्दों पर मुखर मतदाता
– कटका खानपुर निवासी गया प्रसाद उर्फ चेयरमैन वर्मा कहते हैं, आए दिन यहां की चीनी मिल खड़ी हो जाती है। किसान परेशान रहते हैं। कोई जनप्रतिनिधि झांकने तक नहीं आता।
– चीनी मिल के विस्तारीकरण से रोजगार सृजन के साथ ही गन्ना किसानों की दिक्कतें भी दूर हो जातीं। श्याम नारायण पांडेय कहते हैं, शहर में अतिक्रमण बड़ी समस्या है। इसकी वजह से जाम लगता है।
– सौरमऊ गांव निवासी अवधेश शुक्ला बताते हैं, शहर से निकलने वाला कूड़ा मेरे गांव के पास खुले में फेंका जा रहा है। कूड़े की दुर्गंध से सौरमऊ के साथ ही आसपास के गांवों के लोगों का जीना दुश्वार है। दो साल पहले कूड़ा निस्तारण के लिए सौरमऊ में स्थापित किया गया एमआरएफ सेंटर आज तक नहीं शुरू हो सका।
मुस्लिम 75 हजार
एससी 61 हजार
ब्राह्मण 60 हजार
वैश्य 42 हजार
यादव 41 हजार
क्षत्रिय 40 हजार
कुर्मी 12 हजार
अन्य 48 हजार
2017 का चुनाव परिणाम
सूर्यभान सिंह, भाजपा 86,786
मुजीब अहमद, बसपा 54,393
अनूप संडा, सपा 53,238
दरियाबाद में इस बार न केवल चुनाव बेहद दिलचस्प है, बल्कि इसके रोमांचक होने के भी पूरे आसार हैं। अच्छी संख्या में मुस्लिम, दलित और ब्राह्मण मतदाताओं वाली इस सीट पर कुर्मी, लोध, मौर्य मतदाताओं के रुझान से नतीजा निकलने की उम्मीद है। भाजपा ने विधायक सतीश चंद्र शर्मा को, सपा ने पड़ोस की रामनगर सीट से 2012 में विधायक रहे पूर्व मंत्री अरविंद सिंह गोप को, बसपा ने जगप्रसाद को मैदान में उतारा है। पर, कांग्रेस से चित्रा वर्मा और इस सीट से छह बार विधायक रहे राजा राजीव कुमार सिंह के निधन के बाद उनके पुत्र रितेश का निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरना समीकरणों को जटिल बना रहा है।
दरियाबाद सीट 1962 में अस्तित्व में आई। अस्तित्व में आने के साथ ही इसका मिजाज अलग रहा। पहली बार ही जनसंघ के उम्मीदवार को जीत दिलाकर यहां के लोगों ने अपने सियासी अंदाज का संदेश भी दे दिया। सतीश शर्मा बाराबंकी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ व भाजपा का बीजारोपण करने वालों में शामिल रहे डॉ. अवधेश शर्मा के पौत्र हैं। वहीं, छात्र राजनीति से निकलकर चुनावी राजनीति में आए गोप दो बार हैदरगढ़ एवं 2012 में रामनगर सीट से सपा से ही विधायक रह चुके हैं। वे सपा सरकार में मंत्री भी रहे। जगप्रसाद पूरेडलई ब्लॉक के अरसंडा का पुरवा गांव के कई बार प्रधान रहने के साथ दो बार जिला पंचायत सदस्य रहे। वे 70 हजार रावत सहित 1.10 लाख दलित मतदाताओं के समीकरण से लड़ाई को त्रिकोणात्मक बनाने में जुटे हुए हैं।
सपा के लिए चुनौतियां : 60 हजार मुस्लिम और 25 हजार यादव मतदाताओं से सपा को बड़ी उम्मीदें हैं, तो 45 हजार ब्राह्मण, 25 हजार लोध, 35 हजार कुर्मी और 15 हजार मौर्य को भाजपा अपनी ताकत मान रही है। पर, कांग्रेस उम्मीदवार चित्रा वर्मा एवं निर्दलीय रितेश सिंह सपा की राह में रोड़े बिछाते हुए नजर आ रहे हैं। चित्रा सपा के दिग्गज नेता स्व. बेनी प्रसाद वर्मा के परिवार की हैं, तो रितेश के पिता राजीव सिंह इस क्षेत्र से छह बार विधायक रहे। कांग्रेस से चुनावी पारी खेलना शुरू करने वाले राजीव सपा में भी रहे और 2007 एवं 2012 में सपा से भी विधायक रहे। वर्ष 2017 में सपा के राजीव को ही हराकर सतीश विधायक बने। स्व. बेनी प्रसाद वर्मा और स्व. राजीव सिंह दोनों की इस क्षेत्र में लोकप्रियता रही। राजीव इस बार भी दरियाबाद से सपा के टिकट के दावेदार थे। पर, सपा हाईकमान ने उन्हें टिकट न देकर अरविंद गोप को लड़ाने का फैसला किया। राजीव इससे नाराज थे। गोप के टिकट की घोषणा के बाद ही उनका निधन हो गया। इससे राजीव सिंह के समर्थकों में नाराजगी उपजी। उधर, चित्रा वर्मा भी बेनी बाबू की विरासत का हवाला देकर चुनाव प्रचार कर रही हैं। अरविंद सिंह गोप हालांकि लोगों को मनाने में जुटे हैं।
भाजपा की राह भी आसान नहीं : भाजपा की राह भी बहुत बाधा रहित नहीं दिख रही है। कारण, चित्रा वर्मा जहां कुर्मियों का वोट बांटने में जुटी हैं तो स्थानीय होने एवं ठाकुर मतदाताओं के साथ रितेश सभी बिरादरी में सेंधमारी में जुटे हैं। ऐसा ही बसपा उम्मीदवार के साथ भी है। लगभग 1 लाख से अधिक दलित मतदाताओं के साथ बसपा उम्मीदवार भी दूसरी जातियों में सेेंधमारी कर सकते हैं।
4,12,194
कुल मतदाता
मुस्लिम 60 हजार
कुर्मी, लोध 55 हजार
रावत 70 हजार
गौतम 30 हजार
अन्य एससी 10 हजार
यादव 25 हजार
ब्राह्मण 45 हजार
ठाकुर 30 हजार
मौर्या 15 हजार
2017 का परिणाम
सतीश चंद्र शर्मा, भाजपा 1,19,173
राजीव कुमार सिंह, सपा 68,487
मुबस्सिर, बसपा 54,512
जिला मुख्यालय की गोंडा विधानसभा क्षेत्र को आम जनता सदर विधानसभा क्षेत्र के रूप में जानती है। इसके पीछे यह भी तर्क दिया जाता है कि सदर के चुनावी समर की गूंज पूरे जिले में सुनाई पड़ती है। यही कारण है कि यहां के चुनाव परिणाम पर हर किसी की नजर रहती है। ब्राह्मण, मुस्लिम व अनुसूचित जाति बहुल इस सीट पर ऊंट किस करवट बैठेगा, यह चुनाव दर चुनाव बदलते समीकरणों पर निर्भर रहता है। दो दशक तक जीत हासिल करने के लिए छटपटाती रही भाजपा को 2017 के मोदी लहर में मुकाम मिला।
यहां की जनता ने साल 1996 में भाजपा को झटका देकर सपा के विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह को जिताया, इसके बाद भाजपा मुख्यधारा में 2017 के चुनाव में ही आ सकी। 2017 के चुनाव में सपा के विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह ने क्षेत्र बदल कर अपने भतीजे सूरज सिंह को मैदान में उतारा। इससे सपा को नुकसान हुआ और भाजपा से प्रतीक भूषण सिंह ने जीत दर्ज की। पंचायत चुनाव के दौरान पूर्व मंत्री पंडित सिंह की कोरोना से मौत हो गई।
फिर सपा से सूरज सिंह प्रत्याशी हैं, भाजपा से विधायक प्रतीक सिंह मैदान में हैं। इस बार पूर्व मंत्री के निधन की सहानुभूति के साथ ही पांच साल के कार्यकाल की कसौटी पर चुनाव टिका है। बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी मोहम्मद जकी को उतारकर सपा को झटका दिया। कांग्रेस ने रमा कश्यप को िटकट दिया है। ऐसे में यहां मुकाबला रोमांचक होने की दिशा में बढ़ चला है।
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अयोध्या में गोसाईंगंज विधानसभा क्षेत्र में फिर दो बाहुबलियों के बीच सियासी वर्चस्व की जंग चल रही है। दोनों एक-एक बार विधायक रह चुके हैं। बसपा, कांग्रेस सहित अन्य दल मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की जुगत में हैं। विज्ञापन
भाजपा से आरती तिवारी, सपा से अभय सिंह, कांग्रेस से शारदा जायसवाल, बसपा से राम सागर वर्मा, आप से आलोक द्विवेदी सहित कुल आठ प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। यह सीट 2012 के चुनाव में वजूद में आई। पहले चुनाव में सपा के अभय सिंह ने बसपा से उतरे इंद्र प्रताप तिवारी खब्बू को शिकस्त दी थी। दोनों की पहचान बाहुबली के रूप में है।
2017 के चुनाव में फिर दोनों बाहुबली आमने-सामने थे। अंतर केवल इतना था कि अभय सिंह सपा के ही प्रत्याशी थे, पर खब्बू तिवारी इस बार भाजपा के चुनाव चिह्न पर मैदान में थे। इस बार पासा पलट गया और खब्बू ने 11 हजार मतों से अभय सिंह को शिकस्त दे दी। इस बार भी दोनों बाहुबलियों के बीच सियासी जंग चल रही है। अंतर केवल इतना है कि इस बार दोनों बाहुबली सीधे आमने-सामने नहीं हैं। खब्बू तिवारी की पत्नी आरती तिवारी अभय सिंह के खिलाफ मैदान में हैं। खब्बू तिवारी फर्जी डिग्री के मामले में जेल में हैं।
नए चेहरे लड़ाई त्रिकोणीय बनाने में जुटे : दलित और ब्राह्मण बहुल इस सीट पर कांग्रेस ने शारदा जायसवाल को मैदान में उतारा हैं। उनके परिवार के लोग पुराने कांग्रेसी हैं, तो बसपा से दंगल में कूदे राम सागर वर्मा क्षेत्र के जाने-पहचाने चेहरे हैं। आम आदमी पार्टी से प्रत्याशी आलोक द्विवेदी बीकापुर के पूर्व विधायक संत श्री राम द्विवेदी के पुत्र हैं। ये नए चेहरे मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हुए हैं।
कुल मतदाता 3,93,447
दलित 91 हजार
ब्राह्मण 80 हजार
कुर्मी 55 हजार
निषाद 60 हजार
ठाकुर 33 हजार
यादव 35 हजार
अन्य 39 हजार
2017 का चुनाव परिणाम
इंद्रप्रताप तिवारी खब्बू,भाजपा 89,586
अभय सिंह, सपा 77,966
धर्मराज निषाद, बसपा 46,528