पति और जवान बेटों को खो चुकीं है राष्टपति मुर्मू, आप भी जानिए उनके संघर्ष की कहानी

द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्‍ट्रपति बन गई हैं।शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन सुबह करीब सवा 10 बजे संसद के केंद्रीय कक्ष में किया गया था जिसमें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण उन्हें 15वीं राष्ट्रपति के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाएं उसके बाद नई राष्ट्रपति को 21 तोपों की सलामी दिया गया।

 

पुरे गाँव में जश्न का माहौल

 

 

द्रौपदी मुर्मू के गांव अपरबेड़ा में जश्न का माहौल है। ये जश्न बीते पांच दिन से जारी है। लोग पारंपरिक नाच-गाने के साथ मिठाइयां बांट रहे हैं।

ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से तकरीबन ढाई सौ किलोमीटर दूर मयूरभंज जिला पड़ता है। इसी जिले में एक गांव है अपरबेड़ा। इसी आदिवासी बाहुल्य इलाके से जुड़ी एक महिला देश कि राष्ट्रपति बनी है।राष्ट्रपति ने कहा, ‘मेरा जन्म तो उस जनजातीय परंपरा में हुआ है, जिसने हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ ताल-मेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाया है। मैंने जंगल और जलाशयों के महत्व को अपने जीवन में महसूस किया है। 64 वर्षीय द्रौपदी मुर्मू अब तक भारत की सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति हैं।

 

 

मुर्मू की एंट्री

 

 

 

द्रोपदी मुर्मू की एंट्री 1997 में हुई। सबसे पहले उन्‍होंने पार्षदी का चुनाव जीता। फिर 2000 में विधायक और उसके बाद मंत्री बनीं। फिर 2015 से 2021 तक झारखंड की पहली महिला राज्यपाल रहीं कुछ साल ठीकठाक बीते। लेकिन, उन्‍हें अभी अपनी जिंदगी का सबसे बुरा दौर देखना था। 2009 से 2014 तक उनके जीवन में एक के बाद एक भूचाल आते गए। 2009 में उनके 25 साल के बड़े बेटे की रहस्‍यमय तरीके से मौत हो गई। इस घटना ने उन्‍हें पूरी तरह तोड़ दिया था। 2013 में उनके छोटे बेटे और बाद में उनके भाई और मां की मृत्यु हो गई। बेटे के जाने का गम वह बर्दाश्‍त नहीं कर पा रही थीं। तभी 2014 में उनके जीवन में फिर सैलाब आया। इसमें उन्होंने अपने पति को खो दिया। उसके बाद उन्‍होंने सभी से मिलना-जुलना छोड़ दिया था। वह डिप्रेशन में जानें लगी थीं। दो महीने तक वह नींद में रोती रहीं। लोग यहां तक कहने लगे थे कि वह ज्‍यादा दिन बच नहीं पायेंगी।

अध्‍यात्‍म का लिया सहारा

 

 

वह ब्रह्मकुमारी संगठन के बारे में पहले से जानती थीं इससे उबरने के लिए उन्होंने अध्यात्म का सहारा लिया। द्रौपदी राजस्थान के माउंट आबू स्थित ब्रह्मकुमारी संस्थान में जाने लगीं। यहां कई-कई दिन तक वह ध्यान करतीं। अपने तनाव को दूर करने के लिए राजयोग भी सीखा। और उसके बाद संस्थान के अनेक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगीं

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